हाईवे ऑफ टीयर्स एक ऐसा नाम है जिसे सुनकर ही मन सहम जाता है। यह कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में स्थित हाईवे 16 के उस हिस्से को कहा जाता है जहां 1970 के दशक से अब तक दर्जनों महिलाएं लापता हो चुकी हैं, जिनमें अधिकांश स्वदेशी (Indigenous) महिलाएं थीं।
नाम का अर्थ और पृष्ठभूमि
“टीयर्स” यानी “आंसुओं” वाला हाईवे, क्योंकि इस सड़क पर खोई हुई बेटियों के ग़म में पूरा समुदाय रोया है। यह नाम उन दर्दनाक घटनाओं को दर्शाता है, जहां हाईवे 16 के किनारे लाशें मिलीं या औरतें कभी लौट कर घर नहीं आईं।
स्थान और भौगोलिक स्थिति
यह हाईवे कनाडा के प्रिंस रूपर्ट से लेकर प्रिंस जॉर्ज तक फैला हुआ है, जिसकी लंबाई लगभग 720 किलोमीटर है। रास्ता बहुत ही सुनसान, जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है – जो इसे अपराध के लिए आदर्श बनाता है।
इतिहास और उत्पत्ति

शुरुआती घटनाएं
पहली बार 1970 में एक स्वदेशी युवती की हत्या ने इस हाईवे को सुर्खियों में लाया। उसके बाद कई समान घटनाएं सामने आईं, पर कोई पुख्ता जांच नहीं हुई।
समुदाय की प्रतिक्रिया
स्थानीय समुदाय, विशेषकर स्वदेशी महिलाएं, लगातार आवाज़ उठाती रहीं, लेकिन बहुत समय तक उन्हें नजरअंदाज किया गया।
हाईवे पर गायब होती महिलाएं
पीड़ितों की प्रोफाइल
इन मामलों में अधिकतर कम आय वर्ग की, स्वदेशी महिलाएं शामिल थीं, जो नौकरी, पढ़ाई या घर लौटते समय गायब हुईं।
आदिवासी महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित
70% से अधिक केस ऐसे हैं जिनमें First Nations या Métis समुदाय की महिलाएं शामिल थीं। यह अपने-आप में एक बड़ा सामाजिक मुद्दा है।
उम्र, वर्ग और सामाजिक स्थिति
इन महिलाओं की उम्र आमतौर पर 12 से 30 वर्ष के बीच थी। कई मामलों में उन्हें लिफ्ट मांगते हुए आखिरी बार देखा गया था।
हाईवे 16 का डरावना सच
हत्याओं और गायब होने की घटनाएं
कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1989 से 2006 के बीच 19 केस पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुए, लेकिन स्वदेशी समुदाय मानता है कि वास्तविक आंकड़ा 100 से भी अधिक है।
समय सीमा और आकड़ों की झलक
अब तक बहुत सारे केस unsolved हैं और कई मामलों में कोई आरोपी पकड़ा ही नहीं गया।
RCMP की भूमिका
पुलिस कार्रवाई और विफलता
Royal Canadian Mounted Police पर आरोप है कि उन्होंने केस को गंभीरता से नहीं लिया। आरोप यह भी है कि जातीय भेदभाव के चलते न्याय में देरी हुई।
आरोपों की अनदेखी और सिस्टमिक असमानता
कई बार पीड़ित परिवारों ने कहा कि पुलिस ने उनकी शिकायतों को “भाग गई होगी” कह कर टाल दिया।
मीडिया और जनजागरण
कैसे आया मामला सामने
धीरे-धीरे जब ये घटनाएं बढ़ती गईं, तो मीडिया ने इसे उठाया। तब जाकर सरकार और पुलिस की आंखें खुलीं।
अंतरराष्ट्रीय कवरेज
BBC, Al Jazeera, Vice जैसी इंटरनेशनल मीडिया संस्थाओं ने भी हाईवे ऑफ टीयर्स पर डॉक्यूमेंट्री और रिपोर्ट्स बनाईं।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
समुदायों में भय का माहौल
हाईवे के आसपास रहने वाले लोग अब भी डर में जीते हैं। खासकर महिलाओं को अकेले सफर करने की मनाही है।
माताओं और बहनों की व्यथा
हर मां को अपनी बेटी की चिंता सताती है। कई बहनों ने अपनी बहनों की तस्वीरें लेकर सालों हाईवे पर खड़े हो प्रचार किया।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इनक्वायरी और सरकारी जांच
सरकार ने 2015 में एक बड़ी नेशनल इनक्वायरी शुरू की जिसमें माना गया कि यह ‘Genocide Against Indigenous Women’ जैसा है।
रिपोर्ट और निष्कर्ष
2019 में आई रिपोर्ट में 231 सिफारिशें दी गईं, लेकिन बहुत कम अमल हुआ।
आधुनिक पहल और सुरक्षा उपाय
पीड़ित सहायता केंद्र
हाईवे के किनारे सेफ पॉइंट्स और हेल्प डेस्क बनाए गए हैं, जो कि महिला यात्रियों के लिए आश्रय स्थल की तरह हैं।
GPS सिस्टम और अलर्ट टेक्नोलॉजी
आजकल कुछ ऐप और सुरक्षा तकनीकें इस्तेमाल की जा रही हैं जिससे महिला ट्रैवलर्स की लोकेशन ट्रैक हो सके।
कलाकारों और एक्टिविस्ट्स की भूमिका
डॉक्यूमेंट्रीज़ और वेब स्टोरीज़
“Highway of Tears” नाम की कई डॉक्स बनी हैं जो Netflix और YouTube पर भी देखी जा सकती हैं।
कलाकारों की अभिव्यक्ति
लोकल पेंटर, पोएट्स और थिएटर आर्टिस्ट्स ने इस विषय पर जागरूकता फैलाने के लिए कई प्रदर्शन किए।
‘हाईवे ऑफ टीयर्स’ वेब स्टोरी का उद्देश्य
संवेदना और सशक्तिकरण
इस वेब स्टोरी का मुख्य उद्देश्य है – खोई हुई बेटियों को आवाज़ देना, और समाज को उनकी याद दिलाना।
एक आवाज़ बनाना
हर पाठक, दर्शक और रचनाकार इस कहानी से जुड़ कर बदलाव की दिशा में कुछ कर सकता है।
हाईवे ऑफ टीयर्स से जुड़े प्रसिद्ध मामले
- टैमी लैरोस
- एलिसन पेरिस
- रामोना विल्सन
इनके केस अब भी अधूरे हैं।
जागरूकता की आवश्यकता
शिक्षा और जनसंचार
स्कूलों में, मीडिया में और सोशल प्लेटफॉर्म पर इस विषय को खुलकर बताना ज़रूरी है।
डिजिटल माध्यमों का योगदान
वेब स्टोरीज़, डॉक्यूमेंट्रीज़ और इंस्टाग्राम कैम्पेन्स आज भी इस मुद्दे को जिंदा रखे हुए हैं।
भविष्य की राह
न्याय की उम्मीद
हर लापता महिला के लिए इंसाफ की उम्मीद बनी रहेगी। एक भी केस को भूला नहीं जाएगा।
पीड़ित परिवारों के लिए समर्थन
सरकार और समाज को मिलकर उन्हें मानसिक, आर्थिक और कानूनी सहायता देनी चाहिए।
हाईवे ऑफ टीयर्स सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि एक मौन चीख है उन बेटियों की, जो लौटकर नहीं आईं। ये वेब स्टोरी सिर्फ एक कहानी नहीं, एक जागरूकता अभियान है, एक संघर्ष की झलक है।