“परमाणु वैज्ञानिकों ने Doomsday Clock’डूम्सडे क्लॉक’ को आधी रात के 90 सेकंड्स करीब किया, मानवता के लिए गंभीर चेतावनी”
वाशिंगटन, 2025: परमाणु वैज्ञानिकों ने हाल ही में ‘डूम्सडे क्लॉक’ (या प्रलय घड़ी) को आधी रात के करीब एक और मिनट बढ़ा दिया है। अब यह घड़ी केवल 90 सेकंड्स की दूरी पर है, जो अब तक का सबसे कम समय है। इस घड़ी को 1947 में वैज्ञानिकों ने परमाणु युद्ध, जलवायु परिवर्तन, जैविक संकट और अन्य वैश्विक खतरों के मद्देनजर मानवता के भविष्य के लिए एक चेतावनी के रूप में स्थापित किया था।
इस कदम को वैश्विक संकटों के बढ़ते प्रभावों और दुनिया भर में परमाणु युद्ध की संभावना की बढ़ती चिंताओं के रूप में देखा जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह घड़ी दुनिया में बढ़ते तनाव, युद्ध की स्थिति, जलवायु परिवर्तन की गंभीरता और अन्य वैश्विक संकटों का प्रत्यक्ष संकेत है।
क्या है ‘डूम्सडे क्लॉक’ और इसका महत्व?
‘डूम्सडे क्लॉक’ एक काल्पनिक घड़ी है जिसे ‘बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स’ द्वारा डिज़ाइन किया गया है। इसका उद्देश्य दुनिया को चेतावनी देना है कि मानवता किन संकटों से गुजर रही है और भविष्य में हम कितनी जल्दी प्रलय के करीब पहुंच सकते हैं। घड़ी का समय, जो प्रत्येक वर्ष बदला जाता है, वैश्विक राजनीतिक स्थितियों, परमाणु हथियारों की संख्या, जलवायु परिवर्तन, और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के आधार पर तय किया जाता है। यदि घड़ी की सूइयां आधी रात के करीब होती हैं, तो इसका मतलब है कि हम बहुत ही खतरनाक और निर्णायक स्थिति में हैं, जहाँ मानवता के अस्तित्व को गंभीर खतरे का सामना है।
इस साल के फैसले की पृष्ठभूमि
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल ‘डूम्सडे क्लॉक’ को 90 सेकंड्स पहले बढ़ाने का फैसला किया गया है क्योंकि हाल के वर्षों में दुनिया के सामने कई गंभीर समस्याएँ आ खड़ी हुई हैं, जिनका प्रभाव पूरी मानवता पर पड़ रहा है। विशेष रूप से, रूस-यूक्रेन युद्ध और परमाणु हथियारों के बढ़ते खतरे के बीच इस घड़ी का समय बढ़ाना एक गहरी चिंता का संकेत है।
साथ ही, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल हीटिंग, और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन भी मानवता के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में उभर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन चुनौतियों का समाधान न होने पर हम एक ऐसे मोड़ पर पहुँच सकते हैं, जहाँ मानव जीवन और पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए वापसी संभव नहीं होगी।
रूस-यूक्रेन युद्ध और परमाणु युद्ध का खतरा
इस साल की स्थिति को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला कारक रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध है। रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते तनाव और परमाणु युद्ध के खतरे को लेकर कई बार चेतावनियाँ दी जा चुकी हैं। युद्ध के दौरान दोनों देशों के नेता परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बात कर चुके हैं, जिससे पूरी दुनिया में भय का माहौल बना हुआ है।
साथ ही, अमेरिका और अन्य परमाणु शक्तियों के बीच भी हथियारों की दौड़ और पारंपरिक युद्धों के बजाय परमाणु विकल्प को प्राथमिकता देने की संभावना को लेकर चिंता जताई जा रही है। इन घटनाक्रमों ने वैज्ञानिकों को घड़ी के समय को और पास करने के लिए मजबूर कर दिया है।
जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ
जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और गंभीरता में भी तेजी आई है। सूखा, बर्फबारी, समुद्र स्तर में वृद्धि, और अत्यधिक गर्मी से निपटने के लिए दुनिया भर में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि जलवायु संकट से निपटने के लिए तुरंत उपाय नहीं किए गए, तो पृथ्वी का पर्यावरण पूरी तरह से बदल सकता है, और इससे मानवता की स्थिरता पर गंभीर असर पड़ सकता है।
जैविक संकट और भविष्य की चुनौतियाँ
वैश्विक स्तर पर महामारी, जैसे कि कोविड-19 के बाद अब अन्य जैविक संकटों का भी डर बढ़ा है। वायरस और बैक्टीरिया के फैलने की गति और मानवता पर इसके प्रभाव को देखते हुए, यह सुनिश्चित करना कि दुनिया ऐसी महामारियों से सुरक्षित रहे, एक बड़ी चुनौती बन चुकी है।
वैज्ञानिकों की चेतावनी और समाधान
इस स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, ‘बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स’ के वैज्ञानिकों ने सभी देशों से आग्रह किया है कि वे मिलकर परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकें, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करें और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करें। उनका कहना है कि केवल एकजुट होकर ही हम इन खतरों से बच सकते हैं और भविष्य को सुरक्षित बना सकते हैं।
विज्ञान और राजनीति के बीच सहयोग के बिना, ‘डूम्सडे क्लॉक’ का समय और भी निकट आता जाएगा, जो कि एक भयावह भविष्य की ओर इशारा करता है। अब समय आ गया है कि हम जागरूक हों और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करें।
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